Story on Stress in Relationships
May 20, 2019
Story on Stress in Relationships in Hindi
एक गुरू के दो चेले
एक गुरू के दो शिष्य थे. दोनो गुरू की बहुत सेवा करते थें. गुरू उनकी सेवा से बहुत प्रसन्न रहते थे. गुरू उनकी शिक्षा में अधिक ध्यान देते थे ताकि वह दोनों अपना भविष्य बना सकें.
एक दिन पहला वाला शिष्य छुट्टी लेकर घर चला गया इसलिए, दूसरे शिष्य ने गुरू की सभी जरूरतों को बखूबी से पूरा किया. जब वह वापस आया तो, उसने देखा कि गुरू उसके मित्र से अधिक लगाव रखते हैं.
यह देखकर पहले वाले शिष्य को दूसरे शिष्य के प्रति घृणा होने लगी. वह अपने मित्र से द्वेष करने लगा.
वह दोनों गुरू के मुख से अपनी प्रसंशा सुनने के लिए नाना प्रकार से प्रयत्न करने लगें चूकि दोनों के प्रयासों में स्वार्थ आ चुका था इसलिए, शिष्यों के काम गुरू के ह्रदय को स्पर्श नहीं कर पा रहे थे.
वह दोनों गुरू से प्रसन्नता हासिल करने के लिए काम कर रहें थे. कभी-कभी तो गुरू किसी एक को बोलते तो दूसरा काम करने को पहले पहुँच जाता. यह तभी होता जब दूसरा भी मौजूद रहता, अन्यथा गुरू की बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता.
गुरू दोनों के अंदर अचानक व्यवहार में आयें परिवर्तन को समझ नहीं पा रहें थे.
एक दिन दोनों शिष्यों ने गुरू के सभी काम अलग-अलग बाट लियें.
यहाँ तक तो कोई परेशानी नहीं थी मगर शिष्यों ने गुरू के शरीर का भी बटवारा कर लिया.
एक ने दांया पाँव ले लिया तो दूसरे ने बांया पाँव…..गुरू की प्रत्येक चीज को शिष्यों ने बराबर दो भागों में बाट ली.

पहला शिष्य दायें पाँव को छूकर आर्शीवाद लेता तो, दूसरा बायें पाँव को….. जब पाँव में दर्द होता तो दोनों अपने-अपने हिस्सें के पाँव को दबाकर काम पूरा करतें. गुरू ने इस प्रकार की सेवा से मना भी किया, परन्तु पहले पहल कौन करता ? इस तरह यह काम चलता ही जा रहा था.
एक दिन दूसरा शिष्य नदी से पानी भरने गया था. पहला शिष्य गुरू का दाया पाँव दबा रहा था कि तभी गुरू ने करवट ली और बांया पाँव दाहिनें पाँव पर रख गया. यह देखकर शिष्य का खून खौल उठा और अपने मनमें बोला, ” इस पाँव की इतनी जुर्रत कि मेरे पाँव पर पाँव रखें. यह तो मेरा घोर अपमान हैं.”
उसने इधर-उधर नज़र दौड़ाई और कौनें में गुरू की छड़ी दिखाई दी.
छड़ी उठाकर बायें पाँव पर जैसे ही मारा, गुरू जी चीख उठे 

शिष्य ने गुरू के पाँव में फैक्चर कर दिया.
पास के गाँव से बैध बुलाकर मरहम पट्टी कराई गई, तब तक दूसरा मित्र भी पानी भरकर आ गया.
उसने गुरू से अपने बांय पाँव में पट्टी बाँधने का कारण पूँछा. गुरू ने पूरी कहानी सुनाई. पूरी बात पता चलते ही शिष्य ने अपनी नज़र दौड़ाई और वहीं छड़ उठाकर दाहिने पाँव को बुरी तरह से धुनाई की. जिस प्रकार से पूस में रजाई भरने पर रूई की, की जाती हैं.
अब गुरू के दोनों पाँव फेक्चर हो चुके थे.
दोस्तों, ठीक हम भी इसी प्रकार करते हैं. हम अपने हितों को साधने के चक्कर में अपने परिवार के हितों की टाँग तोड़ने लगते हैं.
जब हम नि:स्वार्थ, समर्पण के भाव से एक-दूसरें के प्रति कार्य करतें हैं तो घर में प्यार और शांति का माहौल उत्पन्न होता हैं.
हम अपने भले के चक्कर में घर की मान-मर्यादा को धूमिल कर देतें हैं.
आपने देखा होगा कि कम्पनियाँ वही तरक्की करती हैं, जो समय-समय पर अपने कर्मचारीयों के वेलफेयर नियमों में बदलाव कर एम्पलाँई फ्रेड़ली नियम बनाती हैं. यदि कम्पनी सिर्फ अपनी तरक्की के बारें में सोचेगी तो यह लाजमी हैं कि एम्पलाँई अपने बारें में सोचेगें. तब रस्सा-कसी की स्थिति उत्पन्न होगी और परिणाम तो दोनों के लिए घातक ही होगें.
“गाड़ी पहियों से ही चलती हैं लेकिन, बिना गाड़ी के पहियों का क्या काम.”
एक और कहानी के माध्यम से हम रिश्तों में आयें तनाव के कारण को समझने की कोशिश करतें हैं.
दो भाईयों का समर्पण

दो भाई अपने खेतों से मिलकर गेंहूँ निकाल कर लातें हैं. उसके बाद दोनों उनको बराबर दो भागों में बाँट लेतें हैं. बाँटने के बाद छोटा भाई किसी काम से बाहर चला जाता हैं.
बड़ा भाई सोचता हैं, ” मैनें तो अपनी जिदंगी में बहुत कुछ कर लिया. छोटे भाई को करने के लिए बहुत कुछ पड़ा हैं इसलिए, वह दस बोरी गेहूँ चुप–चाप से छोटे भाई के ढेर में डाल देता हैं.”
जब छोटा भाई लौटकर आता हैं तो, वह सोचता हैं कि ‘बड़े भाई ने मुझे पढ़ाया-लिखाया हमेशा मदद की, मुझे भी कुछ करना चाहिए. वह भी चुप–चाप से दस बोरी गेहूँ बडे़ भाई के ढे़र में डाल देता हैं.
दोनों के गेहूँ तो उतने के उतने ही रहें लेकिन एक-दूसरे के प्रति समर्पण बढ़ने की वजह उन्हें वैचारिक तौर पर एक रखेगी. लेकिन जब दोनों के बीच अविश्वास पैदा होगा तो दोनों पक्षों को निजि तौर पर समर्पण बेईमानी सा महसूस होगा जबकि अब भी दोनों वह वही हैं जो पहले थे. बस अविश्वास ने उनके बीच एक लकीर खीच दी.
“गलत फहमियों को अपनें अदंर आने की जगह बिल्कुल मत दों वरना, वह आपके परिवार को तबाह कर देगी.”
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