सिर्फ तर्क करने वाला दिमाक एक चाकू की तरह है

Short Inspirational Article in Hindi

दोस्तों, मैं  आज आपको ऐसी पाँस्ट लेकर आया हूँ । जो आपके जीवन में बहुत काम आयेगी । आपकी सफलता को हमेशा सफल बनायें रखने में बहुत मदद करेगी । मैं चाहूँगा कि आप यह पाँस्ट  पूरी पढ़े । यदि हो सके तो आप अपने परिवार के साथ बैठकर पढ़े । 
नीचे जो आप उपरोक्त कथन देख रहें है, इस कथन को कई दिन पहले मेरी Sister ने मुझ से विर्स्तित वर्णन में जानने के लिए पूँछा था । मैनें काफी खोज-बीन करके उसे इस प्रकार से Whatsapp से भेज दिया । तब से यह मेरे  मोबाइल के ड्राफ्ट में पड़ा हुआ था ।  मेरा ध्यान आज पुन: इस पर गया । मैनें पढ़ना शुरू किया तो मेरे मन में ख्याल आया कि मुझे इसे ब्लाँग पर डालना चाहिए ।
“सिर्फ तर्क करने वाला दिमाक ऐसे चाकू की तरह हैं जिसमे सिर्फ धार हैं । प्रयोग करने वाले का हाथ रक्तमय कर देता हैं ।” ( रविन्द्र नाथ टैगोर )
यहाँ नोबेल प्रख्यात साहित्य शिरोमढी़ श्री ‘रविन्द्र नाथ टैगोर’ जी ने अपने कम शब्दो के इस्तेमाल से हमें समझाने की कोशिश की हैं कि हम अपने तर्क से किसी भी बात को दूसरे व्यक्ति के सामने रख सकें । 
अब बात आती हैं कि तर्क करने वाले व्यक्ति के हाथ रक्तमय कैसे हो सकते हैं ? यह स्थिति तब उत्पन्न होती हैं | जब तर्क करने वाला व्यक्ति अपनी कुतर्क को शुद्ध तर्क मान बैठा हो । ऐसे में वह व्यक्ति कुतर्क रूपी खजंर से सामने वाले व्यक्ति को अपने शब्दो से लहूलुहान करेगा । 
तर्क देना और तर्क सुनना दोनो अपनी जगह ठीक हैं मगर यहाँ ध्यान देने वाली बात यह हैं कि कोई भी पक्ष अपनी कुतर्क को अपनी समझ में शुद्ध तर्क न मान बैठा हो । 
तर्क का अतं सभी की स्वतंन्त्र सहमति प्राप्त करता हो । 
किसी भी रिश्ते का आधार तर्क पर निर्भर होता हैं । आपकी तर्क जब तक दुसरे को सतुंष्टी प्रदान नहीं करती तब तक वह दुसरे को कुतर्क से ज्यादा कुछ और नहीं हैं । 
आपकी तर्क जुटाई गई जानकारी पर आधारित होती हैं चाहे फिर वह किसी भी धर्म पुस्तक या अन्य साधनो के माध्यम से हो । 
ठीक वही जानकारी किसी अन्य धर्म में कोई और कारण दिया हो तो वहाँ कुतर्क होना तय हैं 
किसी भी ज्ञान को तार्किक रूप से समझने, या लेकर आया हूँ । उसके बारे में पढ़ने या बात करने से भी, हमारी चेतना निश्चित रूप से प्रभावित होती है । ऐसी प्रभावान अवस्था को समाधि कहते हैं, जो अपने आप में समचित्त होती है| ‘धि’ का अर्थ है बुद्धि या चेतना की शक्ति, जो आपको स्थिर रखती है| यहां तक कि जब हम स्वयं के बारे में एक निश्चित तर्क के साथ बात कर रहे होते हैं, तब भी हम समाधि की अवस्था में होते हैं |
यदि आप अपने किसी अध्यापक से तर्क कर रहे हैं  :- ऐसा कुछ हो जाता है  तो आप के लिए उनके मन में थोड़ा सा तो नकारात्मकता आ ही जायेगी क्योंकि आपने अपने तर्क को तर्क और उनके तर्क को कुतर्क माना है।
यदि आप अपने अभिभावक से तर्क कर रहे हैं  :- 
आपकी कही गई बात कुतर्क साबित होती है, तो आपके लिए अच्छी बात साबित नहीं हो सकती। क्योंकि आप तर्क को समझाने में विफल हुए । ऐसे में आप अपने परिवार के साथ सम्बन्ध खराब कर लेगें ।
यदि आप अपने किसी दोस्त से तर्क कर रहे हैं   :- 
आप अपने दोस्त को कुतर्की बना देने और खुद को गलत होने के बाद भी सही साबित कर दिए तब हो सकता है आपकी दोस्ती में हमेशा के लिए दरार आ जाए और वो दरार आपके लिए हानिकारक हो। अतः ऐसा तर्क ना करें कि आपको ज्ञान भी ना मिले और आप उपरोक्त रिश्ते भी हार जाएं ।

तर्क करें लेकिन सिर्फ तर्क ही न करें 

नतीजतन निष्कर्ष यह निकल कर सामने आता है कि तर्क करना और तर्क सुनना कुछ भी गलत नहीं है, परेशानी तब उत्पन्न होती है, जब हम अपने तर्क रूपी कुतर्क को सही मानकर उसमें अंधे होकर सामने वाले व्यक्ति का तर्क नहीं समझ पाते। जिसका खामियाजा हमें भुगतना ही पड़ता है।

अतः हमें चाहिए कि हम सिर्फ तर्क ना करें बल्कि सहज तर्क करें और तर्क को सुनें भी, जिससे संबंधों की वार्ता भी बनी रहे और अच्छे ढंग से सुलभ हो सके तथा हमें वास्तविक ज्ञान भी मिल सके,और हमारे बीच संबंधों का फूल भी सूखने से बचा रहे तथा महक सबके साथ बनी रहे ।
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                                                       धन्यवाद 

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