आत्म-चितंन !

हर व्यक्ति के पास कुछ न कुछ हुनर होता हैं | यह बात मै पूरे दावे के साथ कहँ सकता हूँ | बस फर्क इतना है कि जो लोग समय रहते अपने अंदर झाककर अपने हुनर को तराश लेते हैं उनका हुनर छप जाता हैं और जो अपनी किश्मत का रोना रोते रहते हैं उनका हुनर छिप जाता हैं | सिर्फ छिपता ही नहीं बल्कि बह जाता हैं उन्ही के आँसूओं की बाढ़ में ……ढह जाते हैं अप्रयासरत सपनों के महल जो सिर्फ देखे गये कभी उन पर काम नहीं किया गया | 


और जो आँसूओं को रोकने की क्षमता तथा जज्बातो को थामने की ताकत रखते हैं वो सूरज की सुर्ख गवाही में अपनी सफलता की कहानी लोगो के दिलो पर लिखते हैं | जो कभी भुलाई नहीं जा सकती,….जो कभी मिटाई नहीं जा सकती | 
 इग्लैंड के बैज्ञानिको ने इसांनी शरीर के हर एक अंग की कीमत का आकलन किया तो पता चला कि हमारे पूरे शरीर की कीमत 8 खरब डाँलर से भी ज्यादा हैं | उसके बावजूद भी हम रोते रहते हैं | हमारे पास कुछ नहीं हैं …. आखिर क्यो ? क्योकि आपने अपने शरीर के किसी भी अंग का न होने का कभी अहसास नहीं किया हैं | 
‘Dialogue in the dark’ नाम के रेस्टोरेंट में कभी खाना खाने का अवसर मिले तो जरूर जाइयें | उसमें इतना भयंकर अधेरा रहता हैं कि आपको अपने मुँह में कुछ भी डालने के लिए टटोल कर निश्चित करना पडेगा | आप 15 से 20 मिनट के अदंर ही इतने uncomfort हो जाऐगें कि आप तुरंत बाहर निकलने को कहने लगेगें | कितना सुख है इन आँखो का आपके जीवन में ….जो सब कुछ दिखाती हैं परन्तु आप उन्हें ही नहीं देख पातें ।
अब आप अदांजा लगाइयें उन लोगो के बारे में जिन्होने अपने जीवन में कभी भी पहली भोर को अपनी आँखो से नहीं देखा | उन्होने पूरा जीवन ही अधेरे में सिर्फ चीजो को महसूस करके करने में गुजार दिया | इन आँखों की मदद से आप कितना कुछ देख लेते हैं | आप पल भर में काफी दूर तक चीजों की सुदंरता को देख  सकते हैं | उन्हें अपने सुपर कम्प्यूटर दिमाक में सुरक्षित कर लेते हैं |
कुछ लोग सुबह उठते ही मुँह से बुरा-भला बोलने लगते हैं | वो शब्दो की कीमत उस इसांन से जाकर पूँछे जिसके पास जुबान नहीं हैं | 
जो लोग कभी अपने माता-पिता की बातो को सुनना पसंद नहीं करते | वो कानो की कीमत उनसे जाकर पूँछे जो एक शब्द सुनने को तरस गये हो | उन्हें नहीं मालूम कि लता मगेंशकर की मधूर आवाज कैसी हैं…… ?
खरबो डॉलर के मालिक हैं, आप ‘ और आप फिर भी दोष देने में लगे हैं | कि मेरे पास कुछ भी नहीं हैं …..मैं बहुत गरीब हूँ ।

 मैं हैरान रह गया जब मैंने पहली बार ऐसे व्यक्ति के बारे में सुना जिसके न तो दोनो हाथ हैं और न दोनो पैर | वो उन सभी लोगो से बेहतर लाइफ जीता हैं । जिनके पास शरीर में सब कुछ फिट होने के बावजूद भी एक मजबूर याचक की जिदंगी जीते रहते हैं | 
मैं बात कर रहा हूँ ” निक व्युजेसिक” की | जिसकी माँ ने पैदा होते ही उसे देखा तक नहीं | क्योकि उन्हे ‘rare disorder, tera-amelia syndrome’ की बिमारी थी | जिसमें दोनो हाथ-पाँव नहीं होते हैं | इसके बावजूद उन्होने कभी हिम्मत नहीं हारी और वो normal इसांनों की तरह खुद पानी पीते हैं, फुटबॉल खेलते हैं । खुद सेविग करते हैं । और खुद ही स्वीमिग भी करते हैं | अब उनकी शादी हो चुकी और उनका एक लडका भी हैं | 
वो कहते हैं , ” अगर आपके साथ चमत्कार नहीं हो सकता, तो खुद एक चमत्कार बन जाइए |”

          अधिकतर लोग कहते हैं कि हमें ज्यादा नहीं सोचना चाहिए | जबकि आपकी सोच ही आपको “अलग और आम ” बनाती हैं | 
साधारणतय दो तरह की सोच रखने वाले व्यक्ति होते हैं :-

Right thinking & wrong thinking :-

* Wrong thinking :- 
   “””””””””””””””””””””” जो भी आपके believe के ऊपर based हैं वो wrong thinking हैं |

* Right thinking:-
   “””””‘”””””””””””””””””” जो भी आपकी Realty के ऊपर based हैं वो right thinking हैं | 
Believe हमारे inclusion के ऊपर based हैं | और जहॉ reality हैं वहॉ पर believe की जरूरत नहीं हैं |

जब आप जीवन से जुडी जरूरत की जड़ो को खोजने निकलते हैं तब मन की मिट्टी में एक पौधे का जन्म होता हैं | जिसे जीवनदायी ‘जल’ की आवश्यकता होती हैं जो पौधे को वृक्ष बनाने में अपना अहम योगदान देता हैं | चाहे उसे जल कहीं से प्राप्त हो, चाहे जमीन से, औंस से, बर्षा से, कुँए से, नल से कहीं से मिले मिलना चाहिए | 
जल के समकक्ष रखा जा सकता है नियमित अभ्यास को, जब तक आपके सपनो की जड़ो को नियमित पवित्र जल सीचता रहेगा तब तक आपके सपनों के पखों में उड़ान रहेगी, जुनुन में जान रहेगी, जड़े जमीन से जुड़ी रहेगी और नज़रो में हदे आसमान रहेगी |
विश्वास की जड़े कमजेर हो, तो माता-पिता के आर्शीवाद का जल लें |
दिशा भ्रमित हो, तो दृष्टीकोण की जड़ो को गुरूजनों के मार्गदर्शन के जल से सीचें |
भटकाव की भूख भड़के, तो एकाग्रता की जड़ो को आत्मविश्वास के जल से पौषित करें |
धैर्य धीरज धरने से इनकार करने लगे, तो मानस की जड़ो को आध्यात्म के जल से सीचें |
और सबसे महत्वपूर्ण अपने सपनों की जड़ो को, सकारात्मकता के जल से सदैव सीचते रहें | 
सफलता मजबूर होकर कामयाबी का मीठा फल आपकी मेहनत से तैयार किये गये वृक्ष पर प्रस्फूटित कर देगी | जिसके बाद उसके संवर्धन और सुरक्षा की जिम्मेदारी दुनियॉ अपने आप ले लेगी | 
तो आइये सफलता का प्रसाद पाने के लिए मेहनत के इस महायज्ञ में अपने श्रम की सविधां, धैर्य की धूप, अभ्यास की आहूति, और लक्ष्य की लो से अस्तित्व की अग्नि प्रज्वलित करें तथा कुछ नया, कुछ मौलिक, कुछ बेहतर करने का सकंल्प करते हैं |
         मैं अपने बारे में ज्यादा कुछ तो इस पाँस्ट में बता पाऊँगा, हॉ ‘   मगर मेरी कोशिश जरूर रहेगी कभी विस्तार से चर्चा करने की | 
अभी मैं बताना चाहूँगा दोस्तों , ” मैं भी आप ही तरह एक जिज्ञांसु इंसान रहा हूँ | नई चीजो को जानने की दिलचस्पी, महान लोगो की बायोग्राफी पढ़ना, किताबे पढ़ना, कभी कोई गीत या कविता लिखना (सिर्फ पर्सनली) आदि चीजों के बारे रूची लेना | 
मैं अकेला कुछ भी नहीं कर सकता | मुझे हमेशा आपके प्यार और सहयोग की आवश्कता रहेगी | मैं इटंरनेट के महासागर में कोई नदी तो नही मगर एक बूँद बनकर जरूर रहना चाहता हूँ | 
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                                                         धन्यवाद….

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