कुश्ती करके तो कभी ढाबे पर जूठे बर्तन धोकर परिवार पाल रहा राष्ट्रीय धावक

राष्ट्रीय स्तर का धावक वर्तमान में गुमनामी का शिकार हो चुका है। परिवार के पालन पोषण के लिए राष्ट्रीय धावक कभी ढाबे पर जूठे बर्तन साफ करने और गांव में लगने वाले मेलों में कुश्ती में लड़ने के लिए मजबूर है। यह कहानी है विधानसभा क्षेत्र भोरंज के रहने वाले धावक शिव कुमार शर्मा की।

शिव कुमार शर्मा 16 बार राष्ट्रीय एथलेटिक प्रतियोगिता में भाग लेने के अलावा जूनियर और सीनियर नेशनल प्रतियोगिताओं में दमखम दिखा चुका है। जोधपुर में अखिल भारतीय साईं सीनियर नेशनल प्रतियोगिता में शिव कुमार ने तीसरे पायदान पर रहकर हिमाचल की झोली में कांस्य पदक डाला था।

शिव कुमार तीन बहनों का इकलौता भाई है। पिता सहकारी सभा में काम करते हैं। भोरंज की ग्राम पंचायत पट्टा के रहने वाले शिव कुमार शर्मा का जन्म एक जनवरी 1990 को हुआ। दसवीं तक की पढ़ाई राजकीय पाठशाला मराहना, लदरौर से पूरी की।

दसवीं कक्षा के दौरान स्कूल स्तर की एथलेटिक प्रतियोगिताओं में बेहतर प्रदर्शन करने के बाद शिव कुमार का दाखिला साईं छात्रावास बिलासपुर में हुआ। वर्ष 2014 मेंं नेताजी सुभाष नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्पोर्ट्स पटियाल पंजाब से कोच का प्रशिक्षण प्राप्त किया।

शिव कुमार ने कहा कि परिवार के पालन पोषण के लिए उसे दिहाड़ी-मजदूरी, कुश्ती और ढाबे पर काम करना पड़ रहा है। दिल्ली स्थित अखिल भारतीय एथलेटिक्स फेडरेशन के कार्यालय और शिमला स्थित खेल विभाग के कई बार चक्कर काटने के बावजूद उन्हें एथलेटिक्स का प्रमाणपत्र उपलब्ध नहीं हो पाया है।

 जबकि उनके साथ अन्य धावकों को शिमला खेल विभाग से ही प्रमाण पत्र उपलब्ध होने के बाद सरकारी नौकरी भी मिल चुकी है। शिव कुमार की तरह ही हमीरपुर का एक अन्य धावक अनूप राणा भी दिहाड़ी लगाकर गुजारा कर रहा है। 

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