रणछोड़ दास रबारी की वीरता की कहानी
July 19, 2021
क्या यह संभव है कि किसी व्यक्ति के पैरो के निशान देखकर उसकी उम्र से लेकर वजन तक बता दें और वो कितनी दूर पहुंच पाया होगा यह भी बता दे. ऊँट के पैरो के निशान देखकर यह बता दें कि उस ऊँट पर कितने आदमी सवार थे.
आपको पढ़कर आश्चर्य जरुर हो रहा होगा पर यह सच है. हम बात कर रहे हैं. गुजरात के बनासकांठा ज़िले के पाकिस्तान सीमा से सटे गाँव पेथापुर गथड़ों के रणछोड़ दास की.
भेड़ बकरी व ऊँट पालन का काम करने वाले साधारण से दिखने वाले असाधारण व्यक्ति को देखकर कोई कहं भी नहीं सकता कि इतने बड़े-बड़े काम कर देगें. उनके जीवन में बदलाव तब आया जब उन्हें 58 वर्ष की आयु में बनासकांठा के पुलिस अधीक्षक वनराज सिंह झाला ने उन्हें पुलिस के मार्गदर्शक के रूप में रख लिया.
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1965-71 की जंग में रणछोड़ की अहम भूमिका
देश का अकेला वीर रणछोड़ रबारी1200 पाकिस्तानीयों पर पड़ा भारी
1965 की जंग में कच्छ सीमा पर विधाकोट बॉर्डर से पाकिस्तानी सेना ने आक्रमण कर दिया था. भारतीय सेना ने इसका करारा जवाब दिया और असंभव कार्य को संभव कर दिखाया रणछोड़ दास पगी की सहायता लेकर.
रणछोड़ दास इलाके के चप्पे-चप्पे से वाकिफ थे, वे पैर के निशान को अच्छी तरह से जानते-समझते थे. अपनी इस खूबी से उन्होंने भारतीय क्षेत्र में छिपे 1200 पाकिस्तानियों को खोज में कामयाबी मिली.
इसके अलावा रणछोड दास पागी ने 1971 के युद्ध में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. तब सेनाध्यक्ष जनरल ए. के. मानेकशॉ ने भी उनके कार्य की सराहना की थी. उन्होंने रणछोड़ पागी के साथ भोजन भी लिया था.
कच्छ के बाॅर्डर का नाम रणछोड़ दास रखा गया
कच्छ-बनासकांठा सीमा के पास सुईगाम की BSF बॉर्डर को रणछोड़ दास बॉर्डर नाम देकर उन्हें श्रद्धांजलि दी गई है. हाल ही में बाॅर्डर पर उनकी प्रतिमा भी स्थापित की गई है. वे मांडवी की कचहरी में काम करते थे.
सुरक्षा बल की कई पोस्ट के नाम मंदिर, दरगाह और जवानों के नाम पर हैं, किन्तु रणछोड़ भाई पहले ऐसे आम इंसान हैं, जिनके नाम पर पोस्ट का नामकरण किया गया.
इनका पूरा नाम रणछोड़ दास सवाभाई रबारी था. रणछोड पाकिस्तान के घरपारकर, जिला गढडो पीठापर में जन्मे थे. विभाजन के समय वे एक शरणार्थी के रूप में आए थे. अविभाजित भारत के पेथापुर गथडो गांव के मूल निवासी थे. पेथापुर गथडो विभाजन के चलते पाकिस्तान में चला गया. पशुधन के सहारे गुजारा करने वाले रणछोड़ भाई पाकिस्तानी सैनिकों की प्रताड़ना से तंग आकर बनासकांठा (गुजरात) में बस गये थे.बाद में बनासगाठा पुलिस में राह दिखाने वाले (पागी) के रूप में सेवारत रहे. जुलाई-2009 में उन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृति ले ली. उस समय उनकी उम्र 109 साल थी.
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रणछोड दास रबारी पर बनाई जा रही है फिल्म
इस समय 1971 के युद्ध पर एक फिल्म बन रही है. Bhuj: the pride of india, इस फिल्म में अजय देवगन मुख्य भूमिका में हैं. फिल्म में रणछोड़ पागी की भूमिका संजय दत्त निभा रहे हैं.
फिल्म में संजय दत्त का नाम रणछोड़ रबारी रखा गया है. एक आगामी भारतीय हिंदी भाषा एक्शन फिल्म है, जो अभिषेक दुधैया द्वारा निर्देशित, सह-निर्मित और लिखित ऐतिहासिक सच्ची घटनाओं पर आधारित है.
ट्रेलर की शुरुआत भुज एयरपोर्ट पर एयरस्ट्राइक से होती है. भारत जब पाकिस्तान की सेना को रोकने का तरीका ढूंढता है, तो हम देखते हैं कि कैसे अजय, संजय, सोनाक्षी, नोरा और शरद के चरित्र देशभक्ति की आग से भरे हुए हैं. मिसाइल लॉन्च से लेकर युद्धपोतों पर हमले तक, बहुत सारे एक्शन सीक्वेंस भी देखने को मिलेंगे.
1971 के India-Pakistan युद्ध के दौरान स्थापित, यह IAF स्क्वाड्रन लीडर विजय कार्णिक के जीवन के बारे में है, जो Bhuj हवाई अड्डे के तत्कालीन प्रभारी थे. कार्णिक और उनकी टीम ने 300 स्थानीय महिलाओं की मदद से वायुसेना के एयरबेस का पुनर्निर्माण किया. यह फिल्म आप अपने नजदीकी सिनेमा घरो में 13 अगस्त 2021 को जाकर देख सकते हैं.
रणछोड़ पागी को लोक गीतो में किया जाता है याद
ऐसे बहुत कम लोग होते है जिनको आगे की पीढ़ियां लोक गीतो के माध्यम से अवगत होती हैं. देश के लिए ऐसे महत्वपूर्ण काम करने वाली रणछोड़ दास पगी को लोक गायकों ने अपने डायरा में बार-बार याद किया है. राजभा गढ़वी ने उनकी रणबंकों रणछोड़ रबारी थीम से लोक गीत में शामिल कर उन्हें अमर बनाया है.
रणछोड़ दास रबारी राष्ट्रपति अवार्ड से सम्मानित
रणछोड़ पागी ने पाकिस्तान के 1200 सैनिकों के बारे में जानकारी देकर भारतीय सैनिकों की मदद की थी. उनके इस साहसिक कार्य के लिए उन्हें राष्ट्रपति अवार्ड भी दिया गया. रणछोड़ भाई के इस योगदान से भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सैनिकों पर विजय पाई थी. उनके इस कार्य को यहां के लोक गीतों में भी गाया जाता है.
113 साल की उम्र में 17 जनवरी 2013 को उनका देहांत हो गया.
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