पितृपक्ष का महत्व क्या होता है ?

पितृपक्ष का क्या महत्व होता है ?

एक पंडितजी को नदी में तर्पण करते देख एक फकीर अपनी बाल्टी में से पानी गिराकर जाप करने लगा ..

“मेरी प्यासी गाय को पानी मिले।”

पंडितजी के पूछने पर उस फकीर ने कहा कि…

जब आपके चढ़ाये जल और भोग आपके पुरखों को मिल जाते हैं तो मेरी गाय को भी मिल ही जाएगा।

इस पर पंडितजी बहुत लज्जित हुए।”

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यह मनगढंत कहानी सुनाकर एक इंजीनियर मित्र जोर से ठठाकर हँसने लगे और मुझसे बोले कि –

“सब पाखण्ड है जी..!”

शायद मैं कुछ ज्यादा ही सहिष्णु हूँ…

इसीलिए, लोग मुझसे ऐसी अत्यंत मूर्खतापूर्ण बात करने से पहले ज्यादा सोचते नहीं है क्योंकि, पहले मैं सामने वाली की पूरी बात सुन लेता हूँ… उसके बाद ही उसे जबाब देता हूँ।

पितृपक्ष का क्या महत्व होता है
पितृभोज अनुष्ठान

खैर… मैने कुछ नहीं कहा….

बस, सामने मेज पर से ‘कैलकुलेटर’ उठाकर एक नंबर डायल किया… और, अपने कान से लगा लिया।

बात न हो सकी… तो, उस इंजीनियर साहब से शिकायत की…

इस पर वे इंजीनियर साहब भड़क गए और, बोले- ” ये क्या मज़ाक है…???

‘कैलकुलेटर’ में मोबाइल का फंक्शन भला कैसे काम करेगा..???”

तब मैंने कहा…. आपने बिल्कुल सही कहा…वही तो मैं भी कह रहा हूँ कि…. स्थूल शरीर छोड़ चुके लोगों के लिए बनी व्यवस्था जीवित प्राणियों पर कैसे काम करेगी ???

इस पर इंजीनियर साहब अपनी झेंप मिटाते हुए कहने लगे-

“ये सब पाखण्ड है, अगर ये सच है… तो, इसे सिद्ध करके दिखाइए”

इस पर मैने कहा…. ये सब छोड़िए और, ये बताइए कि न्युक्लीअर पर न्युट्रान के बम्बारमेण्ट करने से क्या ऊर्जा निकलती है ?

वो बोले – ” off-course it’s called atomic energy”

फिर, मैने उन्हें एक चॉक और पेपरवेट देकर कहा,-” अब आपके हाथ में बहुत सारे न्युक्लीयर्स भी हैं और न्युट्रांस भी…!

अब आप इसमें से एनर्जी निकाल के दिखाइए…!!

अब साहब समझ गए और तनिक लजा भी गए एवं बोले- “जी, एक काम याद आ गया बाद में बात करते हैं ”

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कहने का मतलब है कि….. यदि, हम किसी विषय / तथ्य को प्रत्यक्षतः सिद्ध नहीं कर सकते तो इसका मतलब ये कतई नहीं कि वह तथ्य ही गलत है बल्कि .. इसका अर्थ है कि हमारे पास समुचित ज्ञान, संसाधन वा अनुकूल परिस्थितियाँ उपलब्ध नहीं है।

क्योंकि, सैद्वांतिक रूप से तो हवा में तो हाइड्रोजन और ऑक्सीजन दोनों मौजूद हैं..फिर, हवा से ही पानी क्यों नहीं बना लेते ???

अब आप हवा से पानी नहीं बना रहे हैं तो… इसका मतलब ये थोड़े ना घोषित कर दोगे कि हवा में हाइड्रोजन और ऑक्सीजन ही नहीं है।

हमारे द्वारा श्रद्धा से किए गए सभी कर्म दान आदि आध्यात्मिक ऊर्जा के रूप में हमारे पितरों तक अवश्य पहुँचते हैं अतः व्यर्थ के कुतर्को मे फँसकर अपने विज्ञान सम्मत धर्म, संस्कार व् आस्थाओं के प्रति कुण्ठा न पालें…!

और हाँ…जहाँ तक रह गई वैज्ञानिकता की बात तो….

क्या आपने किसी भी दिन पीपल और बरगद के पौधे लगाए हैं…या, किसी को लगाते हुए देखा है?

क्या फिर पीपल या बरगद के बीज मिलते हैं ?

इसका जवाब है नहीं मिलते….ऐसा इसीलिए है क्योंकि… बरगद या पीपल की कलम जितनी चाहे उतनी रोपने की कोशिश कर लो परंतु वह लगेगी नहीं।

इसका कारण यह है कि प्रकृति ने यह दोनों उपयोगी वृक्षों को लगाने हेतु अलग ही व्यवस्था कर रखी है।

जब कौए इन दोनों वृक्षों के फल को खाते हैं तो उनके पेट में ही बीज की प्रोसेसिंग होती है और तब जाकर बीज उगने लायक होते हैं।

पितृपक्ष का क्या महत्व होता है
कौओ को भोज कराना

उसके पश्चात कौवे जहां-जहां बीट करते हैं, वहां वहां पर यह दोनों वृक्ष उगते हैं।

और… किसी को भी बताने की आवश्यकता नहीं है कि पीपल जगत का एकमात्र ऐसा वृक्ष है जो round-the-clock ऑक्सीजन (O2) देता है और वहीं बरगद के भी औषधीय गुण अपरम्पार हैं।

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साथ ही आप में से बहुत लोगों को यह मालूम ही होगा कि मादा कौआ भादो महीने में अंडा देती है और नवजात बच्चा पैदा होता है।

तो, इस नयी पीढ़ी के उपयोगी पक्षी को पौष्टिक और भरपूर आहार मिलना जरूरी है।

शायद, इसलिए ऋषि मुनियों ने कौवों के नवजात बच्चों के लिए हर छत पर श्राघ्द के रूप मे पौष्टिक आहार की व्यवस्था कर दी होगी।

जिससे कि कौवों की नई जनरेशन का पालन पोषण हो जाये……

इसीलिए…. श्राघ्द का तर्पण करना न सिर्फ हमारी आस्था का विषय है बल्कि यह प्रकृति के रक्षण के लिए नितांत आवश्यक है।

साथ ही… जब आप पीपल के पेड़ को देखोगे तो अपने पूर्वज तो याद आएंगे ही क्योंकि उन्होंने श्राद्ध दिया था इसीलिए यह दोनों उपयोगी पेड़ हम देख रहे हैं।

अतः…. सनातन धर्म और उसकी परंपराओं पे उंगली उठाने वालों से इतना ही कहना है कि….

जब दुनिया में दूसरे धर्मो आदि का नामोनिशान भी नहीं था…

उस समय भी हमारे ऋषि मुनियों को मालूम था कि धरती गोल है और हमारे सौरमंडल में 9 ग्रह (नवगृह ) हैं…..साथ ही हमें ये भी पता था कि किस बीमारी का इलाज क्या है…कौन सी चीज खाने लायक है और कौन सी नहीं…

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श्राद्ध के प्रकार

मत्सय पुराण के अनुसार श्राद्ध के तीन प्रकार बताए गये हैं-

नित्य, नैमित्तिक और काम्य. इनमें से नित्य श्राद्ध वे हैं जो अघ्र्य तथा आवाहन के बिना ही किसी निश्चित अवसर पर किये जाते हैं. जैसे अमावस्या के दिन या फिर अष्टका के दिन का श्राद्ध. देवताओं के लिए किया जाने वाला श्राद्ध नैमित्तिक श्राद्ध कहलाता है. यह श्राद्ध किसी ऐसे अवसर पर किया जाता है जो अनिश्चित होता है. जैसे कि यह श्राद्ध पुत्र जन्म आदि के समय किया जाता है. किसी विशेष फल के लिए जो श्राद्ध किये जाते हैं वे काम्य श्राद्ध कहलाते हैं. लोग इसे स्वर्ग, मोक्ष, संतति आदि की कामना से प्रत्येक वर्ष करते हैं.

इसीलिए… सनातन धर्म का सम्मान करना चाहिए.

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