निराशा में आशा का दूसरा नाम है देशराज
July 27, 2021
दोस्तों आज की पोस्ट दिल को छू जाने वाली है. हमने यह पोस्ट भोजपुरी भोकाल पेज से ली है. इस पोस्ट का श्रेय हम भोजपुरी भोकाल पेज को देना चाहेंगे.❤
जो लोग अपने जीवन से निराश हो चुके हैं. जिनके जीवन में अनेक समस्याओं ने आकर डेरा डाल लिया है. यह उनके लिए प्रेरणा का कार्य करेगी.
मिलिए ये हैं “श्री देशराज जी”🌹

देशराज जी की कहानी उन्ही की जुबानी पढ़िये. 6 साल पहले, मेरा सबसे बड़ा बेटा घर से गायब हो गया, वह हमेशा की तरह काम पर निकला लेकिन कभी वापस नहीं लौटा. एक हफ्ते बाद, लोगों को उसकी लाश एक ऑटो में मिली. वो सिर्फ 40 साल का था. मेरे साथ उसका एक हिस्सा मर गया, लेकिन जिम्मेदारियों के बोझ ने मुझे सही से दुःख मनाने का समय भी नहीं दिया – अगले ही दिन, मैं सड़क पर था. अपना ऑटो चला रहा था.
कड़वा समय किसी तरह कट रहा था. अनचाही आहट ने एक बार फिर करवट ली और 2 साल बाद, दुःख ने फिर से मेरा दरवाज़ा खटखटाया -मैंने अपने दूसरे बेटे को भी खो दिया. गाड़ी चलाते समय, मुझे एक कॉल आई- “आपके बेटे की लाश प्लेटफॉर्म नंबर 4 पर मिली है. उसने आत्महत्या कर ली है.
मेरी बहू और उनके 4 बच्चों की ज़िम्मेदारी ने मुझे जिन्दा रखा. दाह संस्कार के बाद, मेरी पोती, जो 9 वीं कक्षा में थी. उसने पूछा, “दादाजी, क्या अब मेरा स्कूल छूट जायेगा?” ’मैंने अपनी सारी हिम्मत जुटाई और उससे कहा, “कभी नहीं! तुम जितनी चाहो उतनी पढाई करना.”
मैं पहले से ज़्यादा समय तक ऑटो चलाने लगा. मैं सुबह 6 बजे घर से निकलता और आधी रात तक अपना ऑटो चलाता. इतना करने के बाद भी मैं हर महीने बस दस हज़ार रुपये कमा पाता. उनके स्कूल की फीस और स्टेशनरी पर 6000/- खर्च करने के बाद, मुझे 7 लोगों के परिवार को खिलाने के लिए मुश्किल से 4000 ही बचते.
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अधिकांश दिनों में, हमारे पास खाने के लिए मुश्किल से ही कुछ होता है. एक बार, जब मेरी पत्नी बीमार हो गई, तो मुझे उसकी दवाएँ खरीदने के लिए घर-घर जाकर भीख माँगनी पड़ी.त
लेकिन पिछले साल जब मेरी पोती ने मुझे बताया कि उसकी 12 वीं बोर्ड में 80% अंक आए हैं, तो मुझे लगा मैं अपना ऑटो आसमान में उड़ा रहा हूँ. मैंने पूरे दिन, अपने सभी कस्टमर को मुफ्त सवारी दी! पोती ने मुझसे कहा,’दादाजी, मैं दिल्ली में बी.एड कोर्स करना चाहती हूँ.”
उसे दूसरे शहर में पढ़ाना मेरी औकात से बाहर था, लेकिन मुझे किसी भी कीमत पर उसके सपने पूरे करने थे इसलिए, मैंने अपना घर बेच दिया और उसकी फीस चुकाई. फिर, मैंने अपनी पत्नी, बहू और अन्य पोतों को हमारे गाँव में अपने रिश्तेदारों के घर भेज दिया, और मैं मुंबई में बिना छत के रहने लगा.
अब एक साल हो गया है और सही कहूँ तो ज़िन्दगी से कोई शिकायत नहीं है. अब ऑटो ही मेरा घर है. मैं अपने ऑटो में ही खाता और सोता हूं और दिन भर लोगों को उनकी मंजिल तक ले जाता हूँ. बस कभी कभी दिन भर ऑटो चलाते हुए पैरों में दर्द होता है लेकिन जब मेरी पोती फोन करके कहती है कि वो अपनी क्लास में First आई है तो मेरा सारा दर्द गायब हो जाता है.
मुझे उस दिन का बेसब्री से इंतज़ार है कि वो टीचर बन जाये और मैं उसे गले लगाकर बोल सकूँ- “मुझे उस पर कितना गर्व है.”
वो हमारे परिवार की पहली ग्रेजुएट होने जा रही है. जैसे ही उसका रिजल्ट आएगा मैं पूरे हफ्ते किसी भी कस्टमर से पैसे नहीं लूँगा.
ये आर्टिकल. Humans of Bombay पर आया था. इसको हिन्दी में ट्रांसलेट करके आपसे शेयर कर रहा हूँ. ऐसे लोग ये सोचने पर मजबूर करते हैं कि ज़िन्दगी चाहे कितने भी शिकायत के मौके दे. हमें कभी उम्मीद का हाथ नहीं छोड़ना चाहिए. ये उम्मीद ही इस दुनिया में रहने लायक बनाती है. इनका नाम देशराज है. खार डंडा नाका पर मिल जायेंगे गाडी नंबर 160 है.
आपसे निवेदन है कि इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा शेअर किया जाये ताकि इनको व इनके काम को प्रसिद्धी मिल सके. लोग जरा सी परेशानी में आत्महत्या तक कर लेते है ठीक उसी प्रकार देशराज के जीवन में यदि थोड़ी खुशी आ जाये तो वो लोगो से किराया लेना बंद कर देते हैं. समाज में फैली नीरशता को चीरती आशा की किरण है देशराज जी.
यदि आपके आस-पास ऐसा कोई व्यक्तिव का धनी जीव है तो आप उसे हम तक जरूर पहुँचाये. हमे गर्व होगा ऐसे लोगों के बारे में लिखकर. आप हमें Merajazbaamail@gmail.Com पर भेज सकते हैं. 🙏🙏
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