आचार्य चाणक्य के अनुसार कैसे शिक्षक करें राष्ट्र का निर्माण ?
December 26, 2018
जब मगध का शासक धनानदं मगध की जनता के हितों की रक्षा की वजह उनका शोषण करने लगा यहा तक कि शव को जलाने के लिए लकड़ी पर भी कर लगाकर अपने एशों आराम में इस्तेमाल करने लगा ।
और विश्व विजय की कामना लिए यवन शासक अलेकजेण्डर सिकदंर भारत की अस्मिता को रोधता हुआ आगे बढ़ रहा था । तब आचार्य चाणक्य ने आचार्य परिषद को राष्ट्र और राष्ट्र के प्रति राष्ट्रियता का बोध कराया …..।
अपने ही सृजनों के हाथों सम्मानित होने पर गौरव का अनुभव होता हैं । प्रसन्नता भी होती है….एक विष्णु गुप्त गौरव भूषित हो, ना ही परिषद और ना ही शिक्षक के लिए गौरव की बात हो सकती हैं । शिक्षक और परिषद तब भूषित होगी, जब यह राष्ट्र गौरवशाली होगा ।
और राष्ट्र गौरवशाली तब होगा, जब यह राष्ट्र अपने जीवन मूल्यों और परम्पराओं को निर्वाह करने में सफल व सक्षम होगा….और राष्ट्र सफल व सक्षंम तब होगा , जब शिक्षक अपने उत्तरदायित्व को निर्वाह करने में सफल होगा ….और शिक्षक सफल तब कहाँ जाऐगा , जब वह प्रत्येक व्यक्ति में राष्ट्रिय चरित्र निर्माण करने में सफल हो ।
यदि व्यक्ति राष्ट्र भाव से शून्य हैं , राष्ट्र भाव से हीन हैं , राष्ट्रियता के प्रति सजग नहीं हैं तो यह शिक्षक की असफलता हैं और हमारा अनुभव सांक्षी हैं कि राष्ट्रिय चरित्र के अभाव में हमने राष्ट्र को अपमानित होते देखा हैं । हम शस्त्र से पहले शास्त्र के अभाव से पराजित हुए हैं ।
हम शस्त्र और शास्त्र धारण करने वालो को राष्ट्रियता का बोध नहीं करा पायें….और व्यक्ति से पहले खण्ड-खण्ड हमारी राष्ट्रियता हो गई ।
शिक्षक इस राष्ट्र की राष्ट्रियता जागृत करने में असफल रहा । यदि शिक्षक पराजय स्वीकार कर लें तो पराजय का वह भाव राष्ट्र के लिए घातक होगा ।
अत: वेद बदंना के साथ-साथ राष्ट्र बदंना का स्वर भी दिशाओं में गुजना आवश्यक हैं….आवश्यक हैं व्यक्ति व्यवस्था को यह आभास कराना कि व्यक्ति की राष्ट्र की उपासना में आस्था नहीं रहीं तो उपासना के अन्य मार्ग भी सघंर्ष मुक्त नहीं रह पायेगें ।
अत: व्यक्ति से व्यक्ति, व्यक्ति से समाज तथा समाज से राष्ट्र का एकीकरण आवश्यक हैं इसलिए व्यक्ति को शीघ्र ही राष्ट्र व समाज को एक सूत्र में बाँधना होगा….और वह सूत्र राष्ट्रियता ही हो सकती हैं ।
शिक्षक इस चुनौती को स्वीकार करें और वह राष्ट्र के नव- निर्माण के लिए सिद्ध हो । सभंव हैं आपके मार्ग में बाँधाऐं आऐगी पर शिक्षक को उन पर विजय पानी होगी ।
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि राष्ट्र की अस्मिता पर आँच आयें तो शिक्षक शस्त्र उठाने से भी पीछे न हठें ।
आगे वह कहते हैं कि शिक्षक का सामर्थ शास्त्र हैं …और यदि मार्ग में शस्त्र बाधक हो और राष्ट्र मार्ग पर कटंक शस्त्र की भाषा समझते हों तो शिक्षक अपने सामर्थ का परिचय अवश्य दें । अन्यथा सामर्थवान शिक्षक अपने शास्त्रों की भी रक्षा नहीं कर पायेगें ।
सभंव हैं राष्ट्र को एक सूत्र में बाँधने के लिए सत्ताओं से भी लड़ना पड़े , पर स्मरण रहें सत्ताओं से राष्ट्र महत्वपूर्ण हैं ।
राजनैतिक सत्ताओं के हितो से पहलें राष्ट्रिय हित महत्वपूर्ण हैं ।
अत: राष्ट्र की वेदी पर सत्ताओं की आहूति भी देनी पड़े तो शिक्षक सकोंच न करें ।
इतिहास साक्षी हैं कि सत्ता व स्वार्थ की राजनीति ने राष्ट्र का अहित किया हैं । हमें अब सिर्फ इस राष्ट्र का विचार करना हैं । यदि शासन साथ दें तो ठीक अन्यथा शिक्षक अपने पूर्वजों के पूण्य व किर्ति को स्मरण करके अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह करने में सिद्ध हो , विजय निश्चित हैं… विजय निश्चित हैं इस राष्ट्र के जीवन मूल्यों की…..विजय निश्चित हैं इस राष्ट्र की सप्त, सिधूं की संस्कृति की । आवश्यकता हैं , मात्र आवाह्न की …।
महान आचार्य चाणक्य
2 Comments
adbhut vichar aapke madhyam se hume padhne ko sadaiv milta hai aur aasha hai aage bhi milta rahega ..apka lekh mere website https://santoshpandey.in par bhi ublabdh hain jaisa aap jante hain ..dhnyavaad vivek ji
आभार सर ! आपसे ही शुरूआत हुई थी …तब मुझे ब्लाँगिग के बारे कुछ भी नहीं पता था । बस मन में कुछ लिखने की इच्छा होती थी ।