Motivational Story: पैर के नाकाम होने पर भी पैरों पर खड़े हुए हैं व्यास, पढ़े इस दिव्यांग शिक्षक की कहानी
Motivational Story: आज हम आपको ऐसे व्यक्ति की कहानी बताने जा रहे हैं जिसके पांव ने तो घुटने टेक दिए लेकिन उनकी हिम्मत मजबूत थी, इसलिए सारी मुश्किलों को पीछे छोड़ते हुए उन्होंने अपना लक्ष्य प्राप्त कर लिया. हम बात कर रहे हैं, जमुई जिले के गिद्धौर प्रखंड के रहने वाले दिव्यांग शिक्षक व्यास की.
इनकी उम्र कुछ डेढ़ साल के आसपास रही होगी उसी समय वह पैरालाइज हो गए थे. पोलियो से ग्रस्त होने के कारण इनके मां बाप ने इनका काफी इलाज कराया लेकिन कोई सुधार देखने को नहीं मिला. लेकिन व्यास ने भी हिम्मत नहीं हारी और अपने मजबूत इरादों से आज वह इस मुकाम पर पहुंच चुके हैं कि दूसरों को सफलता पाने में मदद कर रहे हैं.
व्यास एक सरकारी टीचर हैं और सेवा गांव की एक सरकारी स्कूल में पढ़ाते हैं. इनके अपंगता या फिर इनका शिक्षक होना कोई खास बात नहीं है, लेकिन इनके पढ़ाने का तरीका कुछ अनोखा है जिसके लोग कायल हो गए हैं. उनकी लगन और हिम्मत के सामने सब हार चुके है.
इनकी जिंदगी में कई परेशानियां आई है जो दूसरों के लिए प्रेरणा बन गई है. सच में व्यास की कहानी एक प्रेरणादायक कहानी है. इसलिए यहां के लोग खुद व्यास को अपना प्रेरणास्रोत मानते है.
35 साल के हो चुके व्यास के बचपन में ही पोलियो हो गया था और उनके पैरों ने काम करना बंद कर दिया था. उन्होंने बता दिया कि पोलियो की भी सीमा होती है और इन्होंने बोर्ड की परीक्षा पास की और स्नातक करने पहुंच गए. इन्होंने इकोनॉमिक्स जैसा सब्जेक्ट चुनकर आगे की पढ़ाई जारी रखी और आज वह एक सरकारी टीचर है.
उन्होंने अपने पोलियो की बीमारी को खुद पर हावी नहीं होने दिया और बैसाखी के सहारे खड़े खड़े बच्चों को पढ़ाते है. हिंदी विषय के शिक्षक व्यास पढ़ाने के साथ साथ बच्चों को प्रार्थना में लेकर जाते है, उन्हें गेम खिलाते है. वह स्कूल में इधर से उधर तक बड़ी आसानी से विचरण करते दिखते है और बच्चों को भी मोटिवेट करते है.
उन्होंने गाँव वालों की बाते दिल पर ले ली जो इनको एक बोझ बताते थे. अपनी माँ के सहयोग और खुद की मेहनत से आज वह इस मुकाम पर खड़े है और आलोचना करने वाले लोगों का मुँह बंद किया है.
गांव के कुछ लोगों ने इनकी मां को इन्हें दूर कहीं छोड़ने की सलाह दी थी क्योंकि उनका वजन कम था और यह शरीर से अपंग हो चुके थे. उनकी मां बचपन में ने गोद में लेकर दूर तक चलती जाती थी. इसलिए खुद का कोई भी काम नहीं कर पाते थे. लेकिन गांव वालों की बातों को गलत साबित करने के लिए उन्होंने हिम्मत की और अपनी पढ़ाई को हथियार बनाया.
आज व्यास एक अच्छे पद पर नौकरी कर रहे हैं और अपने परिवार का पालन पोषण कर रहे हैं. साथ ही लोगों से वह सम्मान भी प्राप्त कर रहे हैं जो बहुत कम लोगों को मिलता है. स्कूल के प्रिंसिपल ने बताया कि मिडिल स्कूल के टीचर हैं लेकिन उनकी मेहनत और लगन को देखकर विभाग के अधिकारी ने उन्हें हाई स्कूल के बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेदारी भी दे दी. व्यास बच्चों को पढ़ाने के अलावा स्कूल की बड़ी जिम्मेदारी भी संभाल लेते हैं.