नमस्कार की आदत ने कैसे बचाई मदन की जान Hindi Kahani
October 24, 2018
मदन आइस फैक्ट्री में एकाउटं मैनेजर की पाँस्ट पर जाँब करते थे । वह काफी सक्त स्वभाव के थे ..इसलिए उनसे स्टाफ के लोग किनारा करके रहते थे । मदन को धूम्रपान से काफी नफरत थी । उन्होनें वहाँ धूम्रपान के लिए चेतावनी बोर्ड भी लगवा रखा था ।
एक दिन आलू जमा करने की भीड़ लगी हुई थी । तभी वहाँ एक बुजुर्ग बीड़ी पीने लगा । जैसे ही मदन की नज़र उस बुजुर्ग पर पड़ी । उन्होने उस बुजुर्ग के गाल पर एक थप्पड़ जड़ दिया । हालाकि बीड़ी पीना गलत बात हैं लेकिन थप्पड़ मारने को भी जायज नही ठहराया जा सकता ।
रमन लाल जो कि सिक्योरिटी गार्ड की ड्यूटी करता था । उसकी ड्यूटी फैक्ट्री के मुख्य गेट पर रहती थी । मदन के आते-जाते समय रमन लाल आदतन नमस्कार जरूर करता था । मगर मदन अपने मद में ही खोये रहते थे । उन्हेंने नस्कार भी लेना अपनी हैसियत को कम करने जैसा लगता था ।
एक दिन मदन कोल्डस्टेरेज के अदंर आलू का भंडार निरीक्षण करने के लिए अदंर गये हुए थे । सांय का समय हो चुका था । तभी वहाँ घुम रहें सिक्योरिटी गार्ड की नज़र उस गेट पर पड़ी । उसने गेट खुला देखकर अनुमान लगाया कि यह गेट मजदूरो की भूल से खुला रह गया हैं । इसलिए वह अपनी जिम्मेदारी समझते हुए गेट बंद करके चला गया ।
जब मदन वापस उस गेट के पास पहुँचे तो गेट बंद पाकर बैचेन हो गये । उन्होने काफी कोशिश की लेकिन किसी भी तरह गेट खुल जायें । मगर जब काफी प्रयास करनेे के बाद गेट नहीं खुला तो वह एक जगह खड़े हो गये । कुछ ही देर में उन्हें ठंड़ महसूस होने लगी ।
मदन ने अपने दिमाक का इस्तेमाल करते हुए वहाँ लगे आलू के बोरों को पलटने का काम शुरू कर दिया । जिससे उनकें शरीर में गर्मी बनी रहें । काफी देर तक वह बोरों को इधर से उधर करते रहें ।
जब वह थक जाते तो थोड़ी देर रूक जाते । जैसे ही ठण्ड़ लगती वैसे ही वह पुन:शुरू हो जाते ।
उधर रमन लाल गेट पर सोच रहें थे कि आखिर सारे लोग छुट्टी करके चले गये मगर मदन साहब अभी तक क्या कर रहें हैं ?
रमन लाल का मन नहीं माना और एक बार खुद जाकर देखने का निश्चय किया ।
जब रमन लाल उस गेट के पास से होकर गुजरे तो उन्हें अदंर से कुछ खट-पट की आवाज सुनाई दी ।
रमन लाल ने आवाज सुनकर तुरंत गेट खोलकर देखा तो मदन ठंड की वजह से काप रहें थे ।
रमन लाल ने तुरंत कम्बल का इतंजाम किया । वहाँ आग जलाई ताकी शरीर में गर्मी आ सकें ।
रमन लाल की नि:स्वार्थ सेवा तथा दुसरो के प्रति प्रेम-भाव देखकर मदन को अपने स्वभाव पर पश्चाताप हो रहा था । वह समझ चुके थे कि रमन लाल की नमस्कार की छोटी सी आदत ने उनके प्राण बचा दिये । जिसे वह कभी गम्भीर होकर नहीं लेते थे ।
“हम हमेशा दुसरों से तो अपेक्षा रखते हैं कि वो हमारे लिए कुछ करें । मगर हम दुसरों को सम्मान के बदलें सम्मान भी नहीं देना चाहतें ।”
रमन लाल की छोटी सी आदत ने न कि मदन के प्राण बचायें। बल्कि मदन को उनके अभिमान का अहसास भी कराया ।
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