जीवन में काम आने वाली आचार्य चाणक्य की बातें
June 27, 2021
- मेरा सदा पराजय की अनित्यता पर विश्वास रहा है. जब कोई व्यक्ति मन से स्वीकार करता है तब होती है पराजय. कई बार मन से पराजय स्वीकार करने वालो को, हार से हताश होने वालो को इस बात का पता ही नही होता कि जब उन्होने साहस छोड़ा, तब वो विजय के कितने करीब थे. पराजय विजय की यात्रा में आने वाली, एक अनुभव मात्र होती है. ऐसा अनुभव जो हमें कुछ और सिखाता है. हमारी कमियां हमे बताता है.
- क्रोध के उन्माद में नहीं होता समस्या का समाधान. किन्तु शांत चिंत हर समस्या का हल ढूढ़ सकता है. एक बात सदैव स्मरण रखनी चाहिए. कोई भी नियती जनित समस्या मानविय क्षमताओ से बड़ी नहीं होती.

- समस्या मात्र इतनी सी है कि अधिकतर लोग कठिनाईयो को माात्र देखते रह जाते हैं. किन्तु कुछ लोग कठिनाईयो के बीच रहकर भी अपने लक्ष्य को पाने में सफल होते हैं. इतिहास में उन्ही को याद किया जाता है जो बिषम से बिषम परिस्थितियों में रहकर भी कठिनाईयो को अपनी दृष्ठी में रखकर, दैनिक समस्याओं में बिना उलझे लक्ष्य मार्ग में आने वाली कठिनाइयो को संम्मूल सुलझा लेते हैं.
- इतिहास साक्षी है महान वहीं बनता है जिसने कठिनाइयो को आगे बढ़ने का अवसर बना लिया हो. जिसने अपनी कमियो को निर्बलता नही, बल्कि शक्ति बना लिया हो.
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- असंभव दिखने वाला निर्णय होता क्या है. एक ऐसा कठिन निर्णय जो लिया जा सकता है. इसलिए चाहे जितना असंभव लगे, निर्णय लो. चूकि अनिर्णय को समस्या से खीचोगे, तो समस्या तुम्हे खा जायेगी. निर्णय लेने में साहस रखो, फिर देखो इतिहास तुम्हे कैसे अमर बनाता है.
- एक सरल नियम है. समस्या तुम्हे समाप्त करेगी. उससे पहले तुम समस्या को जड़ से खत्म कर दो. ताकि वो सर कभी ना उठा सके.
- सबसे बड़ा शत्रु मनुष्य की बुद्धी और उसका विवेक होता है. एक बुद्धिमान योद्धा अपने चातुर्य और विवेक से किसी भी युद्ध में विजय हो सकता है. फिर परिस्थितियाँ चाहे कितनी ही बिषम क्यों न हो.
- शासन के लिए सभी मनमाने अधिकारो का केन्द्र नहीं हो सकता. क्योकी मेरे विचार से एक राजा को एक निश्चित समय के लिए शासन मिलना चाहिए, जीवन भर के लिए नहीं. इसलिए राजा को, अपने परिवार के लिए या अपने वंश की महिमा के लिए या अपने सामराज्य की प्रतिष्ठा मान सम्मान के लिए समय नहीं गवाना चाहिए. क्योकी राजा प्रजा की भलाई के लिए काम नहीं कर रहा हैं. तो प्रजा को मिलकर हटा देना चाहिए. एक राजा हित, प्रजा के हित मे होता है.
- मैं जब भी योजना बनाता हूँ तो उसकी सफलता को लेकर शंसय मेरे मन मे भी रहते हैं. मैं योजना की परिकल्पना को अनुभव और अंत: दृष्टी के साथ सोचे समझे संभावित संकटो को ध्यान में रखते हुए कार्य मे लाने का प्रयास करता हूँ. किन्तु कार्य की सफलता योजना, भाग्य और अंतर आत्मा के स्वर के मिले झुले असर से तय होती है. कार्य की सफलता में इन तीन की बराबर की भूमिका होती है.
शिक्षक के लिए
- माना कि एक सहासी योद्धा एक युद्ध जीत कर दिखा सकता है. किन्तु एक शिक्षक किसी साधारण जन को उस युद्ध को जीतने योग्य बना सकता है. किसी युद्ध को जीतने के लिए चुनौती अच्छे योद्धाओ को ढूढने में नहीं, चुनौती है किसी साधारण जन को युद्ध का कारण बताकर, उन्हे असाधारण बनाना. जो एक शिक्षक ही कर सकता है.
भाग्य के लिए
- अपने विचारो को बस में रखो, क्योकी यही विचार तुम्हारे वाणी बनेगें. अपनी वाणी को बस में रखों क्योकी यही तुम्हारी कर्म बनेंगी. अपने कर्म को बस में रखों, क्योकी यहीं कर्म तुम्हारी आदत बनेंगे. अपनी आदतो को बस में रखों, क्योकी यहीं तुम्हारी चरित्र बनेगी और अपने चरित्र को बस में रखो, क्योकी इसी से तुम्हारा भाग्य बनेगा.
छात्र के लिए
- आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जिस बच्चे का मन घर की उलझनो में लग जाता है उसका मन पढ़ाई से हट जाता है. वे कहते हैं कि पढ़ाई करने वाले छात्रो को घर के बिषयों से दूर रहना चाहिए. उन्हे पारिवारिक मोह में नहीं उलझना चाहिए. यही वजह है कि प्राचीनकाल में बच्चे गुरूकुल में जाकर शिक्षा प्राप्त करते थे.
मांसाहारी के लिए
- जो इंसान मांसाहारी है या मांस खाता है उससे दया की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए. क्योकी जो जानवरो पर दया नहीं कर सकता वो इंसानो पर भी दया नहीं कर सकता. क्योकी मांस तामसिक भोजन है. इससे तमोगुण बढ़ता है.
लोभी के लिए
- जो इंसान धन का लोभी होता है उस पर कभी विश्वास नहीं किया जा सकता. क्योकी ऐसे इंसान सदैव इसी फिराक में रहते है कि किस प्रकार और धन को जमा कर सकते हैं. कई बार वो इसके लिए अपनी मर्यादा से आगे बढ़ जाते हैं.
कामी के लिए
- आचार्य चाणक्य ने कहां है कि जिस इंसान का आचरण सहीं नहीं होता वो शरीर से ही नहीं बल्कि मन से भी अपवित्र होता है. चाणक्य कहते है कि जो इंसान सदैव काम भावना के बारे में सोचता हो वो कभी पवित्र नहीं होता है.
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