वेस्ट पड़ी ग्लूकोस की बोतल से भारतीय किसान ने खेती में, बहुत कम समय में कमाए लाखों रुपए…
भारत किसानों का देश माना जाता है। आज भी यहां 75% किसान खेती पर ही निर्भर है। भारत में बहुत ही जगहों पर बारिश का होना और काफी पुरानी तकनीक का इस्तेमाल किसान कर रहे हैं। उनके हिसाब से उनकी मेहनत का फल उनको नहीं मिल पा रहा है क्योंकि पानी कि कहीं पर कमी है तो कही वह किसान खेती के लिए बारिश पर ही निर्भर रह रहे है। इसकी वजह से किसानों को बहुत नुकसान झेलना पड़ रहा है।
मध्यप्रदेश के आदिवासी जिले झाबुआ में कुछ ऐसा हुआ कि वहां पर पहाड़ी क्षेत्र में खेती करना बहुत मुश्किल काम था। यहां मिट्टी के सत्य बारिश के पानी पर ही आधारित खेती के चलते फसल उसके मुकाबले पर कम की होती थी। रमेश बारिया नाम के एक किसान इससे बहुत ज्यादा निराश हो चुके थे। उन्होंने चुनौतियों के बीच में बेहतर पैदावार के लिए खेती करने की इच्छा के बारे में सोचा।
साल 2910 में राष्ट्रीय कृषि नवाचार परियोजना kVK वैज्ञानिकों से उन्होंने संपर्क किया। उनकी मदद से सर्दी बरसात के मौसम में जमीन में छोटे-छोटे पैच में सब्जी की खेती करना शुरू किया। यह खेती इस भूमि के लिए बिल्कुल उचित नहीं थी। इस खेती में करेला, स्पंज लोकी, को उगाया। इसके अलावा एक छोटी नर्सरी की भी स्थापना की। शुरुआत में इनकी ग्रोथ में मानसून में देरी होने की वजह से पानी की बहुत कमी महसूस हो गई थी।
वेस्ट ग्लूकोस की बोतल से किसान ने की खेती
यह देखते हुए कि उनकी फसल खराब हो सकती है तब रमेश ने एन ए आई पी कि फिर से मदद मांगी। वहा के विशेषज्ञों ने उनको सुझाव दिया कि बेस्ट ग्लूकोस की पानी की बोतलों की मदद से उनको नई सिंचाई की तकनीक को अपनाना होगा। वेस्ट ग्लूकोस की पानी की बोतल में ₹20 प्रति किलोग्राम से मिल जाएंगी पानी के लिए एक इनलेट बनाने के लिए ऊपरी आधे हिस्से को काट कर इन पौधों के पास उस बोतल को लटका दें।
उन्होंने इन बोतलों से एक एक बूंद पानी के प्रभाव को पौधों पर बनाया अपने बच्चों को सभी मित्रों को सुबह स्कूल जाने से पहले भरने के लिए कहा इस तकनीक से सीजन समाप्त होने से पहले उन्हें जीरो पॉइंट 1 हेक्टेयर भूमि से ₹15200 मिल गया। यह तकनीक उनके लिए इतनी सक्षम रही कि उन्होंने अपने पौधों को सूखने से बचा लिया इससे पानी की बर्बादी भी नहीं हुई और सब लागत प्रभावी तरीके से हो गई थी।
इसके अलावा बेस्ट ग्लूकोस की बोतल प्लास्टिक का उपयोग करने के लिए डाल दिया जाता है या मेडिकल कचरे की बोतलों को कचरे के ढेर में चढ़ने के लिए हमेशा के लिए छोड़ दिया जाता है। इस तकनीक को गांव के अन्य लोगों ने भी अपना लिया। रमेश बारिया को जिला प्रशासन मध्यप्रदेश सरकार के द्वारा और कृषि मंत्री की सराहना से उनको प्रमाण पत्र से सम्मानित भी किया गया था।
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