कैसे हुई Hyundai कम्पनी की शुरूआत – जानिये पूरी कहानी

आज हुंडई की कारें जैसे – Hyundai Verna/Creta/Grand/Tucson दुनियॉ भर में मशहूर हैं | मगर ‘Hyundai’ कम्पनी को बनाने में ‘चुंग’ को कई चुनौतियों और समस्याओ का सामना करना पड़ा |
हम बात कर रहे हैं ‘साउथ कोरिया’ की मल्टीनेशनल कम्पनी ‘हुंडई’ के बारे में…. जिसकी शुरूआत ‘चुंग-जू यंग’ ने की | ‘चुंग’ ने  अपने जीवन मे बहुत सघंर्ष किया | लेकिन आज उनकी कारो ने लोगों का दिल जीत लिया हैं |



25 Nov 1915 में ‘चुंग-जू यंग’ का जन्म बहुत ही गरीब परिवार में हुआ था | ‘चुंग’ के पिता गरीब किसान थे |
‘चुंग’ सात भाई – बहनों में सबसे बड़े थे | गरीबी की वजह से ‘चुंग’ बचपन में लकड़ी बेचने का काम किया करते थे | उनका सपना था कि वो अध्यापक बनें | मगर जब घर में कुछ खाने के लिए न हो तो बड़े – बड़े सपने छोटे पड़ने लगते हैं | फिर भी उन्होने अपनी प्राथमिक की पढ़ाई मेहनत- मजदूरी करके पूरी की | गरीबी के कारण उन्हे बचपन से ही काफी मेहनत करनी पड़ी | लेकिन एक समय पर ‘चुंग’ अपनी गरीबी से बहुत परेशान हो गये | वो इतने परेशान हो गये कि अपनी 16 साल की उम्र में ही अपने घर ‘असान’ से 24 किमी दूर  एक गाँव में चले गये और वहॉ मजदूरी करने लगें | वो जिस हिसाब से काम करते थे उस हिसाब से उन्हें पैसे नहीं मिलते थे | फिर भी वो खुश होकर काम करते थे | उन्हे इस बात की खुशी थी कि वो खुद से पैसे कमा रहें थे | दो महिने काम करने के बाद उनके पिता उन्हे जबरदस्ती घर ले आयें | ‘चुंग’ घर पर आते ही फिर से भागने की प्लानिंग करने लगें | इस बार दो दोस्तों के साथ ‘सियोल’ भागने का प्लान बनाया | उनके घर से भागने का प्लान यह था कि कैसे भी करके घर की गरीबी दूर करनी हैं | जिस वजह से वो सन् 1933 में दूसरी बार अपने घर ‘असान’ से ‘सियोल’ भाग गये | मगर उनका एक दोस्त पहले ही पकड़ा गया | मगर फिर भी उन्होने अपना मन नहीं बदला और ‘चुंग’ तथा उनका दूसरा दोस्त दोनों ‘सियोल’ चले आये | इधर ‘चुंग’ के पिता उन्हे खोजने में लगे हुए थे | ‘चुंग’ के दोस्त को एक अंजान आदमी मिला, जिसने उन्हें नौकरी दिलाने का भरोसा देकर उनसे सारे रूपये ले लिये और वहाँ से चला और फिर लौटकर वापस नहीं आया | कुछ भी पास में पैसे नहीं थे और न कहीं कोई पहचान थी इसलिए इस बार फिर से ‘चुंग’ को वापस अपने घर आना पड़ा | अब इस बार शांति से ‘चुंग’ अपने पिता के साथ खेती का काम करवाने लगे | लेकिन घर से भागने के प्लान अब भी जारी था | अपने पिता के साथ कुछ दिन काम करने के बाद उन्होने पूरी तरह मन बना लिया घर से भागने का………|
इस बार वो train से ‘सियोल’ जाना चाहते थे | इसके लिए ‘चुंग’ ने अपने पिता की एक गाय को बेच दिया | उन्हे गाय के बदले 70 ‘वोन’ मिले | ‘वोन’ ‘साउथ कोरिया’ की करेंसी हैं | वहॉ जाकर book keeping का काम करने लगे | मतलब छोटे – मोटे transaction को maintain किया करते थे | उनके काम करने का यह उद्देश्य था कि वो छोटे – मोटे Accounted बन जाएंगे |
और life थोड़ी अच्छी हो जाएंगी | सब कुछ ठीक चल रहा था मगर उनके पिता ने उन्हे फिर से ढुढ़ लिया और वो फिर से ‘चुंग’ को घर ले आयें | अब ‘चुंग’ को घर से नफरत सी होने लगी थी | वो अब एक पल भी घर नहीं रहना चाहते थे |  लेकिन बार – बार कोशिश करने के बावजूद वो कुछ नहीं कर पा रहें थे |

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         इस बार फिर पक्का इरादा करके ‘सियोल’ पहुँचकर ‘Incheon harbor’ पर मजदूरी करने लगें | वहॉ से फिर ‘Boseong professional school’ में construction का काम करने लगे | फिर कुछ दिन करने के बाद ही वो ‘starch syrap factry’ में काम करने लगें | पर यहां भी वो ज्यादा दिन काम नहीं कर पायें | फिर उन्होने ‘Bokheang rice store’ में डिलेवरी का काम किया | जिसमे वो चावल को इधर से उधर पहुँचाते थे | उन्हे कम्पनी की तरफ से एक रूम भी मिल गया था | अब ‘चुंग’ ने ठान लिया था कि अब यहीं पर रहकर काम करना हैं | करीब 6 महिने  काम करने के बाद उनके मालिक ने ‘चुंग’ का अच्छा काम देखकर उनका promotion कर दिया और वो rice store में Accounted का काम करने लगें | सन् 1937 में उनके मालिक की तबियत बहुत खराब हो गई | इस वजह से ‘चुंग’ को अपने store का आँनर बना दिया | 22 साल की उम्र में ‘चुंग’ ने store का नाम बदलकर ‘K Yonggil rice store’ रख दिया |
सब कुछ अच्छा चल रहा था | सन् 1939 में ‘चुंग’ अपने store से जापान और जापान की आर्मी को अच्छे दामों पर चावल सप्लाई किया करते थे इसलिए उनकी कमाई अच्छी हो जाती थी | लेकिन जब यह बात ‘साउथ कोरिया’ सरकार को मालूम चली तो सरकार ने  ‘चुंग’ पर ‘rice rationing system’ का आरोप  लगाकर store पर कब्जा कर लिया |

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‘चुंग’ की सारी मेहनत एक झटके में तबाह हो चुकी थी ऐसे में वो सब कुछ छोड़कर वापस घर आ गये | वो सन् 1940 तक घर पर ही रहें | मगर ‘चुंग’ यह बात अच्छी तरह जानते थे कि घर बैठकर कुछ नहीं हो सकता और इतनी कोशिश तथा काम करने का बाद हार मान ली जाएँ | तो यह बेवकूफी होगी |  फिर उन्होनें खुद से वादा किया कि जब तक मंजिल नहीं मिलेगी तब तक वो मेहनत और प्रयास करते रहेंगे |
वो घर से ‘सियोल’ वापस आ गये और Auto-mobile repairing  का business करना चाहते थे इसलिए उन्होनें अपने दोस्त से एक गैरिज खरीद ली |
ताकि उसमें गाड़ियों की repairing कर सकें |
उन्होनें इस काम को शुरू करने के लिए बैंक से 3000 रूपये का लोन ले लिया | गैरिज का काम अच्छा चलने लगा | अगले तीन साल में 60 से 70 आदमी काम करने लगें | ‘चुंग’ की कमाई अच्छी होती जा रही थी | लेकिन सन् 1943 में जापानी सरकार ने ‘चुंग’ के गैरिज को steel plant में करवा दिया | उस समय ‘Colonial’ की सरकार थी | वो जो चाहती वह कर सकती थी | ‘चुंग’ ने अंदाजा लगा लिया कि यह गैरिज भी बर्बाद हो जाएंगा | इसलिए वो सब कुछ छोड़कर फिर से घर आ गये | तभी उस समय ‘साउथ कोरिया’ और ‘जापान’ के बीच युद्ध छिड़ गया |  जिससे देश में तबाही मच गई , और पूरा ‘साउथ कोरिया तबाह हो गया | सब कुछ खत्म हो जाने के बाद साउथ कोरियन सरकार को जरूरत होती हैं ऐसे लोगो की, जो देश को फिर से खड़ा कर सके | क्योकि देश में लड़ाई की वजह से सब कुछ बर्बाद हो गया था | इसलिए नये business man को सरकार ने खुद मदद करने का आँफर दिया | इस प्रकार ‘चुंग’ ने ज्यादा देरी न करते हुए ‘Hyundai’ कम्पनी की शुरूआत की | इस कम्पनी की मदद से ‘चुंग’ बहुत सारे construction किया करते थे | जैसे – सन् 1967 में ‘सोएग डेम’ को बनाया तथा सन् 1970 में Express way को बनाया | फिर Ship yard को बनाया , जहॉ बड़े-बड़े जहाज खड़े किये जाते हैं | कई न्युक्लियर प्लाट बनाये | और भी बहुत सी चीजें अपने देश के लिए बनाया करते थे | और finally बाद में ‘Hyundai Car’ industry में काम किया | आज ‘Hyundai’ भी और कम्पनीयों की तरह 70 से ज्यादा business कर रही हैं |

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‘चुंग’ चाहते तो घर पर आराम से बैठ जाते, पर उन्होनें ऐसा नहीं किया | उनका घर से बार – बार भागना लोगों के लिए मजांक बन गया था | लेकिन उनका घर से बार-बार भागने का मतलब कुछ बड़ा करने की चाहत थी | कई बार असफल होने के बावजूद उन्होने हार नहीं मानी | वो बार – बार कोशिश करते रहें और आखिर में उन्हें सफलता हाथ लगी |


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