होली ! त्योहार एक, सीख अनेक

हमारे देश में ‘होली’ प्रमुख त्योहारों में से एक हैं | जहॉ सभी धर्म- जाति के लोग मिल – जुलकर यह त्योहार मनाते हैं | यह फाल्गुन मास की पूर्णिमा को पूरे देश भर में धूम-धाम से मनाया जाता हैं | भारतीय कैलेंडर के हिसाब से नया साल भी फाल्गुन महिने में मनाया जाता  हैं |



वैसे तो सभी जानते हैं कि हिरण्यकश्यप की बहन होलिका ने जब प्रह्लाद को अपनी गोंद में बैठा कर अग्नि लगाई गई तो होलिका को अग्नि ने जला दिया  किन्तु भगवान हरि के भक्त प्रह्लाद को कुछ भी नहीं हुआ | तभी से लोग होली दहन की परम्परा को निभाते चलें आ रहें हैं | मगर इसका एक बैज्ञानिक कारण यह भी हैं कि इस महिने में अर्थात फाल्गुन महिने की अशुद्ध हवा को शुद्ध करने के लिए जगह- जगह जब नाना प्रकार की लकड़ीयॉ जलाई जाती हैं तो उससे वायु शुद्ध हो जाती हैं |  वहीं दुसरी तरफ यह भी सच हैं कि जब हम लकड़ी जलाते हैं तो ऐसे में हम पेड़ो को ही नष्ट करते हैं जिससे वायु प्रदूषण का खतरा और ज्यादा बढ़ जाता हैं |
अधिकतर शहरो और कस्बों में ईधन की कमी को पूरा करने के लिए प्लास्टिक से बनी चीजों को जलाकर हम अपनी परम्पराओं को तो पूरा करते हैं मगर उसके साथ-साथ अधिक प्रदूषण भी करते हैं |
           अब वक्त आ गया हैं कि हम अन्य दूषित चीजों को जलाने की वजह, काई खा चुके मन को शुद्ध तथा सकारात्मक विचारों के साबुन से धो डालें | और जो सुनते आयें हैं कि होली सभी बैंर, ईर्ष्या, द्वेष, झगड़ो को खत्म कर देती हैं तो उसे हम कर के पूरा निभायें |
बैमनुष्यता की लपटों को हवा देने की वजह , प्रेम की ज्योति को भाईचारे के व्यवहार से सजों कर एकजुटता की सम्प्रभूता को बचायें |
किसी का चहरा देखकर अपनी बनावटी प्रतिक्रिया देकर आप मिलने की रस्म को पूरा मत करिये | यह भ्रम आपको होगा, उसे नही जो आपसे दिल से मिलना चाहता हैं |


‘होली’ का मतलब हैं किसी के हो जाना पूरी पवित्रता (purity) के साथ तथा दुसारा अर्थ हैं  जो बीत गया सो बीत गया (past is past) “होली” |

HOLI – means
 H – heart (घृणा)
 O – out (बाहर)
 L – love (प्यार)
 I – in (अन्दर)
  हम नफरतो को भुलाकर प्यार के साथ होली मनायें | हम द्वेष को लेकर कब तक ढ़ोग करते रहेगें ? क्या होगा जब विधार्थी पढ़ने का ढ़ोग करे ……| क्या होगा जब  युवा काम करने का ढ़ोग करे तथा मातम मनायें बेरोजगारी का….. और क्या होगा जब रिश्ते दूर से बफादारी की सौगंध का ढ़ोग रचें ?


          हमें ‘रंग’ की नही ‘ढ़ग’ की होली खेलनी चाहिए | जब चहेरो के रंग उड़े हुए हो तो ‘गुलाल’ उड़ाने से क्या फायदा ? जिनकी आँखे नफरतों से लाल हो चुकी हो तो उनमें शर्मिदंगी का पानी भी मर जाता हैं | और जो शर्म से भीग गया हो तो फिर उस पर  क्या पानी डालना… ?और क्या रंग डालना…….? रंगो नहीं बल्कि खुद उसमे घुल जाओं , जैसे सूरज गेरूआ रंग में घुला हैं | जब भोर के सूरज को खिड़की से झाककर देखों तो पता नही लगता कि यह सूरज हैं या कोई बड़ा- सा बिधुत बल्ब……|
         लीक पीटते हैं वहीं , जिन्हें चमत्कार की उम्मीद हैं मगर जिन्हें लीक से हटकर चलने की आदत होती हैं, वो चमत्कार करके दिखाते हैं |


इस पाँस्ट को लिखने का मकसद यहीं हैं कि हम चीजों को सही तरह से जाने उन्हें कल्पना की शक्ति से पहचाने और जानने की कोशिश करें कि हमारे पूर्वजों ने हमें जो त्योहार मनाने की जो वजह दी उनके पीछे के असली क्या कारण थे | कोई भी त्योहार, माध्यम होता हैं लोगों को जोड़ने का…..इसलिए होली का यह त्योहार  दिल से मनाइयें | लोगो के साथ खुशियॉ बाटिये |


नोट :- आप प्रदूषण मुक्त होली कैसे खेल सकते हैं तथा जल को कैसे संरक्षण कर सकते हैं ? हमें जरूर सुझाव दें और लोगों को भी बतायें |

    सभी पाठकों को होली की हार्दिक शुभकामनाएँ
,
आपको हमारी पाँस्ट पसंद आई हो तो हमें कमेंट बॉक्स में बतायें | तथा अपने दोस्तों में शेयर करें और हमें अपने सुझाव दें | क्योकि आपके सुझाव हमारे लिए बेहद ही कीमती हैं | और आपके like से हमें पता चलता है कि आपको हमारी  पाँस्ट पसंद  आ रही हैं |


यदि आपके पास भी कोई प्रेणादायक लेख या कोई ऐसी inspirational story हैं जिसे आप दुसरों तक पहुँचाना चाहते हैं तो आप हमें अपने नाम और photo के साथ  हमें  merajazbaamail@gmail.com पर लिख भेजिएं | पाँस्ट पसंद आने पर हम यहॉ पब्लिश करेगें |

Add a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *