शिक्षा और ज्ञान में अंतर

Difference Between Education &Knowledge in Hindi

 

शिक्षा संस्कृत के ‘शिक्ष’ धातु से बना है जिसे सीखना कहा जाता है और बिधा संस्कृत के ‘बिध’ धातु से बना है जिसे जानना कहा जाता है. तो ये ‘सीखने और जानने’ का अंतर है. सीखना परंपरित है, सीखना नीयत है, सीखना सीमित है. जानना पंरपरा से बाहर है, जानना उन्मुक्त है.

जैसे- अभी जानना है इस मनुष्य को अंतरिक्ष के बारे में…अभी जानना हैं जीवन और मृत्यु के रहस्य को…मनुष्य को जनना हैं मनुष्यता पर आने वाली परेशानियों को….तो सीखना सदैव सीमित साचें में सोचना सिखाता है और बिधा अर्थात जानना आपको असीमित साचें में सोचना सिखाता है.
Ex- आसमान से सेब नीचे गिरता हैं ये पूरी मनुष्यता ने सीखा था लेकिन यह नीचे ही क्यों गिरता है इसकी जिज्ञासा ( Curiosity ) के मूल ने न्यूटन पैदा किया. जो Gravity का सिद्धात सिखाता है.
अंग्रेजी में दो शब्द हैं Knowledge & wisdom 
शिक्षा और बिधा में Knowledge & wisdom का अंतर है. जब आप सीखते हैं तब आपका जन्म प्रारम्भ होता हैं. जो आपको भौतिक जन्म मिला है यह तो हर पशु पक्षी को मिलता है लेकिन ऐसा क्या है जो मनुष्य होने पर शास्त्र मनुष्य को “अंहम ब्रह्मास्मि” कहते हैं.
मनुष्य होने के नाते सभी प्राणीयों मे श्रेष्ट माना जाता है. क्योकि आपकी बिधा और ज्ञान आपको आगे ले जाती है. हिंदी में एक शब्द है ‘द्विज’ जिसका मतलब है दूसरा. आपने पहला जन्म अपनी माँ की खोक से लिया और आपने ये जाना कि मैंने जन्म क्यों लिया ? यह आपका दूसरा जन्म है. इसलिए जो अपने दूसरे जन्म को प्राप्त कर लेते है वह ‘द्विज’ कहलाते है. वो किसी जाति, धर्म से नहीं जाने जाते बल्कि उन्होंने यह जान लिया है कि उनका जन्म क्यों हुआ है ? इसलिए आप आत्मज्ञान से ही आगे बढ़ते हैं.
जब ज्ञान प्राप्त करने वाले कुलपतियों द्वारा या आचार्यों द्वारा उस ज्ञान को सीमित साॅचे में या पुस्तकों में बाध दिया जाता है या बाट दिया जाता है और आने वाली पीढ़ियों से कहते है कि आप इसे दोहराइयेें… तो वह शिक्षा में परिवर्तित हो जाता है. इसलिए Living के लिए शिक्षा चाहिए. लेकिन Life के लिए बिधा चाहिए.  इसीलिए तो Living में आज लोग स्नात है लेकिन Life में Failure बढ़ रहा हैं. बिधा आपको मुक्त करती है और शिक्षा आपको सीमित परिधि में बाँधती है.
हमारे यहाँ कहा जाता है “सा बिधा या विमुक्तयें” बिधा आपको मुक्ति देती है. यानि शिक्षा जल की तरह है जो आवश्यक है लेकिन बिधा जीवन की तरह है. जिसका जल एक अंग है. तो एक सामान्य बात है शिक्षा और बिधा के विभेद की.
“शिक्षा हमें Succes देती है लेकिन बिधा हमें Exilence देती हैं.”
Succes सबको चाहिए लेकिन Excellence लाने में आत्मपरिमार्जन, आत्मशुद्धी और आत्मानुशाशन के माध्यम से खुद को ढुढना, खुद से संवाद करना ही बिधा है.
जैसे – पानी के अंदर लोग हजारो सालो से नहा रहे थे लेकिन एक व्यक्ति जब पानी में घुसा और जब पानी बाहर आया तो उसके दिमाक में प्रश्न आया कि यह कैसे हुआ ? इसी जिज्ञासा ने उसे ‘आर्कमिडीज’ बनाया.

“शिक्षा Employee बनाती है और बिधा Leader बनाती है.”

एक पश्चिमी उत्तर प्रदेश का किसान, अपने लहलहाते खेतों में चुंगने वाली चिड़ियाँ उड़ाते समय, जो आवाज अपने मुँह से निकालता है जिससे चिड़ियाँ परेशान होकर भाग जाती है. यह बिधा उसकी संस्कृति में उसके पिता के प्रपिता में से होकर आई है.
यह आवाज उसी प्रकार की निकालना गुहावटी के काजीरंगा के किसान के पास गैड़ो से रक्षा के लिए ऐसी आवाज नहीं है. इसके पास दूसरी वाली आवाज है. इन दोनो आवाजों का विभेद, इन दोनों प्रक्रियाओं का विभेद एक छोटा सा प्रमाण है कि बिधा और संस्कृति, ज्ञान कैसे आप तक पहुँचते हैं ? कैसे आप युगीन चुनौतियों के साथ परिमार्जित करते है ?
“शिक्षा तालाब है एक Swimming pool है. बिधा एक झरना है जैसे झरने का पानी आत्मपरिसार करता है. आत्म शुद्धी करता है. लगातार खुद को ठीक करता चलता है. ऐसे ही ज्ञान (बिधा ) आत्मपरिमार्जन करती है. और आने वाले नये समय की चुनौतियों के लिए स्वंय को तैयार करती है.”

गुरू और शिक्षक में किसे चुने ?

“आप गुरू को चुनियें और आप कोशिश करे कि आप उस शिक्षक को चुने जिसमे गुरू हो.”
शिक्षा का नियमितीकरण
कुछ सालों में हमारी संस्कृति के प्रति इतनी हीन भावना भर दी गई कि हमें अपनी भाषा पर ही गर्व होना बंद होता जा रहा है. जो कुछ बिधा में है वो अच्छा नहीं है….बाहर से आया सब कुछ अच्छा हैं ऐसा बीज रोपा गया हमारी मस्तक पटल पर. गणतन्त्र की परिभाषा बाहर से आयी है.
आज हम Globalization की बात करते है हमारे पूर्वजो ने तो हजारो साल पहले ही लिखकर यह साबित कर दिया था

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“अयं निज: परोवेत्ति गणना लघु चेतसाम |
उदार  चरितानां  तु   वसुधैव   कुटुम्बकम |”
आज हम अपने परिवारो में बटे हुए है लेकिन हमारे पूर्वजों ने तो पूरी दूनियाँ को एक ही घर में समेट लिया था एक ही परिवार माना. इतने बर्षो बाद हमने इतना छोटा सोचा और वो कितनी साल पहले कितना बड़ा सोच पाये क्योकि उनके पास बिधा थी.
शिक्षा मार्ग हैं और बिधा उस मार्ग से पहुँचने का गन्तव्य है.”
जो ज्ञान संस्कार के साथ न आये वो कालांतर में शव हो जाता है और जिस ज्ञान में संस्कार नियत हो, वह  किसी भी जगह बैठ जायें शिव हो जाता है.”
शिक्षा और ज्ञान में अंतर
अज्ञेय की कविता है :-
“पथ का पीड़ादायी पत्थर
कोई सधवा पीपल के नीचे रखकर
श्रृद्धा का लौटा भरकर उडे़ल दे
तो वह पथ का पीड़ादायी कंकड़
हर-हर शंकर बन जाता है.”
“संस्कार से अभिषेकित होने के बाद वह बिधा सत्यम, शिवम, सुंदरम की तरफ जाती है.”
रावण विद्वान और ब्राह्मण होने के बावजूद उसमे अहंकार का ज्ञान था लेकिन राम को अहंकार का ज्ञान था.
ये सामान्य सूत्र है जो बिधा और शिक्षा के बीच में आता है. शिक्षित व्यक्ति का अहंकार देखिये जो शिक्षा प्राप्त करके आया है. जिसने बहुत सारी डिगरियाँ ले ली है. उसके चलने, बोलने, बैठने का सब तरीका बदल जाता है. एक विशेष प्रकार का अहंकार टपकता है. लेकिन जिसे ज्ञान है जो उसने जाना है. वह जानता है कि यह बहुत छोटा है यह कुछ भी नहीं है. यही बात हर व्यक्ति हरेक Business में allow होती है. जिसने खुद को Complite मान लिया समझ लो उसके पतन के दिन आ गये.
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नोट :- हमने यह पाँस्ट ‘कुमार विश्वास’ जी के एक वीडियो से प्रेरित होकर आपकी जानकारी के लिए लिखा है. 
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