‘कोरोना वायरस’ से पीड़ित व्यक्ति की भावुक कर देने वाली कहानी !

कोरोना वायरस

एक व्यक्ति को अचानक हल्की सी खांसी आती हैं. धीरे-धीरे उसके गले में खरास बढ़ने लगती हैं. वह दो दिनों तक गर्म पानी के साथ देसी नुस्खे भी करता हैं. फिर एक दिन उसे बुखार के साथ सर्दी भी होती हैं. अब वह बहुत चितिंत होने लगा. उसे डर लगने लगा कि कहीं उसे ‘कोरोना’ वायरस तो नहीं हो गया.

अगले दिन वह अपना चेकअप कराने के लिए हाँस्पिटल पहुँचता हैं. हाँस्पिटल जाने से पहले घर वालों को सारी बाते बता देता हैं क्योकि कल न जाने क्या हो ? हाँस्पिटल में डाँक्टर उसका सेम्पल लेकर रिपोर्ट के लिए भेज देते हैं और डाँक्टर उसे Self quarantine के लिए बोल देते हैं. वह घर पर आकर खुद को सबसे अलग-थलग कर लेता हैं.
फिर एक दिन अचानक घर के सामने ऐम्बुलेंस की आवाज सुनाई देती हैं. उसकी घबराहट बड़ जाती हैं. पूरा घर जो नहीं चाहता था उन्हें वहीं सुनने को मिलता हैं. उस व्यक्ति को बताया जाता हैं कि उसकी ‘कोरोना‘ रिपोर्ट पाँजिटिव आई हैं.
पूरे घर में गम का माहौल छा जाता हैं. क्योकि पूरा परिवार उसी के सहारे चलता था. उस व्यक्ति को इस बात का दु:ख नहीं था कि उसे ‘कोरोना’ हैं बल्कि उसे दु:ख था कि उसके बाद उसके परिवार की देख-रेख कौन करेगा ? उसके परिवार को कौन संभालेगा ? वह अपने से बड़ो के पैर छूता हैं क्योकि उसे मालूम था कि फिर उसे यह अवसर मिले ना मिलें.
एम्बुलेंश में उसे पूरी तरह ढ़क कर हाँस्पिटल ले जाया जाता हैं.  हाँस्पिटल में जाकर डाँक्टर उसे बताते हैं कि उसका इम्यूनिटी सिस्टम बहुत मजबूत हैं. उसका इलाज शुरू होता हैं. सभी डाँक्टर्स, नर्स उसकी देख-रेख करते हैं. डाँक्टर उसकी रोज उसके घरवालों से फोन पर वीडियों काँल कराते हैं. उसका अच्छे से ख्याल रखा जाता हैं.
ठीक 9 दिन बाद उसकी पुन: टेस्टिंग की जाती हैं. परिवार वाले ईश्वर से प्रार्थना करते हैं. इस बार उस व्यक्ति की रिपोर्ट नेगेटिव आती हैं.
वह व्यक्ति सभी डाँक्टर्स को नमन करता हैं. उनका धन्यवाद करता हैं.
वह कहंता हैं कि आपने मुझे नहीं मेरे परिवार को बचाया हैं. उसकी बाते सुनकर डाँक्टर्स भी भावुक हो जाते हैं.
जैसा कि आप जानते हैं कि ‘कोरोना वायरस’ के इलाज में सबसे ज्यादा खर्च वैटिंलेटर का ही आता हैं. तो डाँक्टरो ने उसके हाथों में बिल थमा दिया. बिल की राशी थी 25000 Rs. वह व्यक्ति उस बिल को देखकर जोर-जोर से रोने लगा. उसे रोता देख डाँक्टर्स ने उसका ढ़ाढ़स बाधा और कहां कि इस बिल के रूपये तुम्हें नहीं देने हैं. यह रूपये हमारे देश की सरकार बहन कर रहीं हैं. यह केवल लोगों को जागरूक करने के लिए हैं. ताकि लोगों को पता चल सकें कि एक व्यक्ति के पीछे सरकार को कितना खर्चा करना पढ़ रहा हैं.
यह बात सुनकर वह व्यक्ति बोला,” डाँक्टर साहब ! मैं पैसों के लिए नहीं रो रहा. मेरे पास देने के लिए इतने पैसे हैं.”
यह बात सुनकर एक पल के लिए सभी डाँक्टर्स चौक हो गयें. और पूंछा तो फिर क्यों रो रहें हो ?
उस व्यक्ति ने अपने जवाब में कुछ ऐसा कहां कि पूरे परिसर में सन्नाटा छा गया. वहाँ जितने भी लोग थे वो उसकी बातों को सुनकर हैरान रह गये.
वह बोला,” मैं यहाँ 9 दिन रहा. आपकी सेवाओं के साथ आँक्सीजन ली. जिसका बिल 25000 Rs. आया. लेकिन मैनें अपनी जिंदगी में अब तक न जाने कितना आँक्सीजन ली होगी ? न जाने कुदरत से कितना कुछ लिया हैं. और जिसका बिल चुकाने के बारे में मैने कभी सोचा ही नहीं. प्रकृति तो भगवान का ही रूप हैं. प्रकृति ने मुझे कभी बिल नहीं थमाया और न मैने कभी उसे बदले में कुछ दिया. ना ही कभी पेड़-पौधे लगायें. ना ही कभी प्रदूषण कम करने की पहल की. न मैनें कभी प्रकृति के हित के बारे में सोचा और ना ही कभी सोचने के लिए समय निकाला.
सब के सब डाँक्टर्स स्तब्ध थे. क्योकि यह बात डाँक्टरो पर ही नहीं हम सब लोगों पर भी लागू होती हैं. उस व्यक्ति ने उस वक्त प्रण लिया कि वह हर साल कम से कम 9 पौधे लगायेगा. और वह प्रदूषण कम करने में अपनी पूरी कोशिश करेगा. वहाँ जितने भी डाँक्टर मौजूद थे उन सब ने भी वहीं प्रण लिया.
दोस्तों, यह कहानी भले ही सच्ची न हो लेकिन इसके पीछे की सीख हम सभी को समझने जैसी हैं. प्रकृति ने हमें बहुत कुछ दिया हैं और देती आ रहीं हैं. आज थोड़ी सी नाराज हैं कल को फिर से शांत हो जायेगी. लेकिन क्या हम अपने व्यवहार में बदलाव ला पायेगें ? क्या हम अपने आप में बदलाव के लिए तैयार हैं ?आइयें मिलकर प्रण करें कि हम अपने-अपने स्तर पर, ‘चाहें वृक्ष लगाना हो, पानी बचाना हो, साफ-सफाई रखनी हो या फिर जानवरो का सम्मान करना हो. इन सबके प्रति अपनी भागेदारी पूरी ईमानदारी के साथ निभायेगें.
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                                                  धन्यवाद !

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